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मावस की अँधेरी रातों में नन्हा-सा सितारा काफ़ी है / रंजना वर्मा
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मावस की अँधेरी रातों में नन्हा-सा सितारा काफ़ी है।
मझधार में कश्ती डूबे तो तिनके का सहारा काफ़ी है॥
मंजिल ना मिले राहें मुश्किल अरमां रूठे पग चल न सके
उस लंबे अकेले रस्ते पर इक साथ तुम्हारा काफ़ी है॥
घनघोर अँधेरा लंबा पथ काँटे पग-पग दुर्बल काया
मन सुस्थिर कर लो तो पथ में नन्हा ध्रुव तारा काफ़ी है॥
किसने पाया किसने खोया जय और पराजय का झगड़ा
हम डिगें नहीं तो जय के हित संघर्ष हमारा काफ़ी है॥
है दिग दिगंत की चाह नहीं हमको सागर से क्या लेना
अग जग की प्यास बुझाने को दरिया का धारा काफ़ी है॥