भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मावस छाई दसों दिशा मेँ कब होगा उजियार यहाँ / विनोद तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मावस छाई दसों दिसा में कब होगा उजियार यहाँ
केवल मौखिक जमा ख़र्च का क्या होगा सरकार यहाँ

पहले ही की तरह गाँव का रखवाला अब भी भूखा है
अब भी गन्दे कपड़े पहने मिला सफ़ाईगार यहाँ

भोला-भालागाँव हमारा इसकी रीत निराली देखी
सब घर जन्मे रय्य्त -परज एक कुटुम सरदार यहाँ

कोई ऐसा धनी भाग का एक-एक ग्यारह कर लेता
और किसी के लिए असंभव करना दो का चार यहाँ

धीरे बोलो सच्ची बातें दीवारें भी सुन लेती हैं
सच की गरदन पर तो हरदम रहती है तलवार यहाँ