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माशूक हमें बात का पूरा नहीं मिलता / 'बेख़ुद' देहलवी

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माशूक हमें बात का पूरा नहीं मिलता
दिल जिस से मिलाएँ कोई ऐसा नहीं मिलता

दुनिया में अगर ढूँढिए तो क्या नहीं मिलता
सब मिलते हैं इक चाहने वाला नहीं मिलता

उश्‍शाक से यूँ आँख तुम्हारी नहीं मिलती
अग़्यार से दिल जैसे हमारा नहीं मिलता

रहती है कसर एक न इक बात की सब में
हम को तो इन अच्छों में भी अच्छा नहीं मिलता

कुछ हाल सुनें कुछ हमें तदबीर बताए
ग़म-ख़्वार तो कैसा कोई इतना नहीं मिलता

क्या मुफ़्त में तुम दिल के ख़रीदार बन हो
बे-ख़र्च किए दाम ये सौदा नहीं मिलता

जब देखिए हम-राह है दुश्‍मन का तसव्वुर
हम से तो वो ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं मिलता

दिल कोई मिलाता नहीं टूटे हुए दिल से
दुनिया में हमें जोड़ हमारा नहीं मिलता

बर्बाद किया यास ने यूँ ख़ाना-ए-दिल को
ढूँढे से भी अब दाग़-ए-तमन्ना नहीं मिलता

जो बात है दुनिया से निराली है नई है
अंदाज़ किसी में भी तुम्हारा नहीं मिलता

आंखें कहे देती हैं कि दिल साफ़ नहीं है
मिलता है वो इस रंग से गोया नहीं मिलता

कहते हैं जलाने को हम अग़्यार के मुँह पर
ऐसों से तो वो रश्‍क-ए-मसीहा नहीं मिलता

ज़ाहिर है मुलाक़ात है बातिन में जुदाई
तुम मिलते हो दिल हम से तुम्हारा नहीं मिलता

अफ़सोस तो ये है कि तुम्हें क़द्र नहीं है
आशिक़ तो ज़माने में भी ढूँढा नहीं मिलता

कहना वो शरारत से तेरा दिल को चुरा कर
क्या ढूँढते हो हम से कहो क्या नहीं मिलता

‘बे-ख़ुद’ निगह-ए-लुत्फ़ पे दे डालिए दिल को
जो मिलता है सरकार से थोड़ा नहीं मिलता