मासा ना तिल भर कदी घटै बधै तक़दीर ।
देव नाम है कर्म का जिसने रचा शरीर ।।
जिसने रचा शरीर उही पालन करता है ।
हाजिर है दिन रात फेर तू क्यूं डरता है ।
गंगादास जन कहें समझ वेदों की भासा ।।
मासा ना तिल भर कदी घटै बधै तक़दीर ।
देव नाम है कर्म का जिसने रचा शरीर ।।
जिसने रचा शरीर उही पालन करता है ।
हाजिर है दिन रात फेर तू क्यूं डरता है ।
गंगादास जन कहें समझ वेदों की भासा ।।