मास्को में है क्या कोई बेगूसराय? / अनामिका अनु
कल जब राजेश्वरी मंदिर
की सीढ़ी पर बैठकर
याद कर रही थी माँ को
तो बिंदुसर सरोवर में खिल गए
लाल कमल
जब घर को याद किया
तो वह तिरहुत नागर शैली में
खड़ा कोई मंदिर लगा मुझे
खटांस खिखिर,सारण,लालसर,
बगेरी, पनडुक्की
कैथी की तरह विलुप्त हो गये
कल तिलकोर के पत्ते
पर पीठार लगा रही थी रमा
मैंने महसूस किया
उन हथेलियों की भंगिमा
और उसका रंग तुमसे मिलता जुलता है माँ
घीऊरा
और कटहल के बीज की चटनी
जब खाती हूँ
तो भुने धनिये की गंध मुझे रुला देती है
मेरी सासू माँ की उंगलियाँ पतली और
बहुत सुंदर हैं
भुन्ना मछली की चर्चा होते ही
मेरे भीतर पिता जाग उठते हैं
मैं पूरे दिन न कुछ खा पाती हूँ
न मुझे प्यास लगती है
कामनाएँ खिखिर की दुम हैं
जो रात में मोटी हो जाती है
आश्रय विहीन
वह रात भर करता रहता था विलाप
टिटही टाँग ऊपर करके सोता है
ताकि आसमान न गिरे ज़मीन पर
काँवर झील में प्रवासी पक्षी
कम हो गए
प्रेम की चाह अब भी बहुत बड़ी है
बस उसमें निर्मल जल
और मीन ही नहीं
मौसम जो बदला है
अधनंगा,सुरख़ाब,मजीठा,अरूण,चेंड
सब गये लौट क्या अपने देश
जुते खेत पर पसरी चांदनी हो गयी भदेस अब
कार्बोफुरान छींट भगाया अतिथि सुजान?
यह विचित्र देश
अतिथिदेवो भव का कौन कर रहा है
अब तक निर्लज्ज गान…
सालिम चिड़ियों के बारे में
कितना जानते थे
तुम प्रेम के बारे में क्या जानते हो?
बिहार का मास्को है बेगूसराय
मास्को में है क्या कोई बेगूसराय?