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मास हे सखि सरस अगहन / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मास हे सखि सरस अगहन भूजल चूड़ा संग यो
तरल चेचड़ा माछ कुरमुर लागय मोन भरि संग यो
पूस हे सखि अन्न नवका संग मांगुर झोर यो
कबइ कुरमुर दाँत दबइत करय जनजन शोर यो
माघ बदरी जाड़ थरथर काँपय तन बड़ जोर यो
सुख बोआरी खंड लखि कए मन विनोद विभोर यो
मास फागुन मदक मातल बहय पछबा बसात यो
बढ़ल स्वादक माछ टेंगड़ा रान्हल सानल भात यो
चैत हे सखि रोग सभदिस रूप नाना देखि यो
तरल भुन्ना पलइ रान्हल खाइत बड़ सुख लेखि यो
मास हे सखि आबि पहुँचल गरम बड़ बइसाख यो
गेल मन रुचि माछ गामर खंड सभ दिन चाख यो
जेठ हे सखि हे हेठ बरखा मुंड भाकुर पात यो
पड़तु बिसरतु आबि ससरतु कर नवका भात यो
मेघ सखि बरसत अखाढ़ जत रसालक डारि यो
तोड़ि काँचे आम आमिल देल सौरा पाल यो
मास हे सखि आओल साओन भरल अंडा घेंट यो
तरल दही माछ मारा खाथि भरि पेट यो
माछ इचना भेटल कहुना खाय भरलहुँ कोठि यो
मास आसिन देवपूजा शंख घंटा नाद यो
रान्हि रहुआ माछ बइसब पूर्ण भेल परसाद यो
मास कातिक बारि मरूआ बऽड़ तरल-अपूर्व यो
पूरल बारहमास हरिनाथ गाओल सगर्व यो
पूस गोइठा डाहि तापब
माघ्ज्ञ खेसारिक साग यो
फागुन हुनका छिमरि माकरि
चैत खेसारीक दालि यो
बैशाख टिकुला सोहि राखब
जेठ खेरहिक भात यो
अखाढ़ गाड़ा गाड़ि खायब
साओन कटहर कोब यो
भादव हुनको आंठी पखुआ
आसिन मरुआक रोटि यो
कातिक दुख-सुख संगहि खेपब
अगहन दुनू सांझ भात यो