माहिए (31 से 40) / हरिराज सिंह 'नूर'
31. क्या साध अधूरी है
बोल तो कुछ इन्सां
क्यों ‘रब’ से ये दूरी है
32. कब सुब्ह की लाली में
‘नूर’ मिला हमको
इक चाय की प्याली में
33. पैरों में चुभा काँटा
अश्क मचल उट्ठे
पर दर्द नहीं बाँटा
34. दाता से अगर माँगा
ख़ूब मिला, हमने
शुक्राना नहीं टाँगा
35. जब घर में तिरे रजनी
कोई खुशी होगी
नाचेंगे सितारे भी
36. बिजली की चमक मन को
ख़ूब डराएगी
कब लाएगी साजन को
37. ‘घन’ जोर से बरसेगा
‘पी’ से मिलन को मन
दिन- रैन ही बरसेगा
38. बेनूर गगन होगा
चाँद जब आयेगा
भरपूर मगन होगा
39. आँखों ही से बोलो तुम
‘हाल’ के ख़ाके में
कुछ रंग तो घोलो तुम
40. क्यों छाई उदासी है
मेघ तो छाएंगे
नदिया भी तो प्यासी है