माहिए (41 से 50) / हरिराज सिंह 'नूर'
41. क्या ख़ूब छटाएं हैं
तृप्त करें मन को
आईं जो घटाएं हैं
42. नन्हीं सी चकोरी को
ख़ूब सजाया है
आशाओं की छोरी को
43. मुंडे दी सगाई है
सबने हथेली पर
क्या मँहदी रचाई है
44. अहसास कई पाले
जिनकी बदौलत ही
ये ‘माहिए’ रच डाले
45. आँखों से हुआ ओझल
नूरे- मुजस्सम वो
मैं सोच हुआ पागल
46. लँहगा, नई चोली में
श्याम भी नाचेंगे
इस बार की होली में
47. ‘टपके’ का है डर भारी
‘शेर’ ने सुन हिम्मत
दीवार पे दे मारी
48. रुद्राक्ष भी पहना है
चाँद मगर शिव की
पेशानी का गहना है
49. ‘रब’ यूँ तो सुला देगा
ख़्वाब मगर मुझको
ता देर रुला देगा
50. मुर्दा है कि ज़िन्दा है
तेरे हवाले ‘रब’
वो तेरा ही बन्दा है