माहिए (51 से 60) / हरिराज सिंह 'नूर'
51. क्या शान निराली थी
‘राणा’ के चेतक की
पलकों की सवाली थी
52. ज़िन्दा कि मरे वो सब
गोद खिलाए जो
अब तेरे सहारे ‘रब’
53. आज़ाद नहीं होते
छोड़ के क़ुर्बानी
हम, क़ैद में ख़ूँ रोते
54. वो ‘हुक्म’ था ‘डॉयर’ का
जा के मरा लंदन
अंजाम था कायर का
55. हर साँस जो आती है
‘चाह’ से सीने के
यादें तिरी लाती है
56. बस प्यार अनोखा है
सारे ज़माने में
बाक़ी सब धोखा है
57. जो बर्फ़-सा गलते हैं
दर्द में आँखों से
सपनों में वो पलते हैं
58. इन्सान तो गलता है
बर्फ़ की सूरत फिर
ये कैसी सफलता है
59. जिसने भी ये देखे हैं
उसने कहा- दुर्दिन
तक़दीर के लेखे हैं
60. इन आँखों की बस्ती में
आप कब आएंगे
मेरी इसी हस्ती में