माहिए (91 से 100) / हरिराज सिंह 'नूर'
91. बस वक़्त गँवाना है
अपने किए पर ही
जी अपना दुखाना है
92. मौसिम भी सुहाना है
आओ मज़े लूटें
क़ुदरत का ख़ज़ाना है
93. माँ का वो दुलारा है
भाई मिरा लेकिन
बहना का जो प्यारा है
94. बारिश की ज़रूरत है
ईद के मौके पर
मिलने का महूरत है
95. जो चाल चलें छोटी
कैसे वो समझेंगे
तक़दीर है जब खोटी
96. वो एक नज़ारा था
देख के आँखें क्या
क़िस्मत को गवारा था
97. दलदल में फँसा पहिया
कर्ण के रथ का है
ऐ पार्थ! करो हमला
98. राधेय का दुख भारी
कोई नहीं जाना
थी कैसी ये लाचारी
99. दिल जीत लिया माँ का
माँ ने दुआएं दीं
जब काम किया माँ का
100. ये रिश्ता रहे ढब से
आज की दुनिया में
नेपाल कहे सब से