भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माहि सरोवर सौरभ लै / बिहारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै

नीठि चलै जल वास अचै, लपटाइ लता तरु मारग मैं कै

पोंछत सीतन तैं श्रम स्वेदन, खेद हरै सब राति रमै कै

आवत जाति झरोखन कैं मग, सीतल बात प्रभात समै कै।