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माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर।
लोकाँ दे भाणे चाक चकेचा,
साडा रब्ब गफ्फूर
माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर।
जीहदे मिलण दी खातर चश्मा,
बहिन्दीआँ सी नित्त झूर।
माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर।
उठ गई हिजर जुदाई जिगरों,
जाहिर दिसदा नूर।
माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर।
बुल्ला रमज़ समझ दी पाईआ,
ना नेड़े ना दूर।
माही वे तैं मिलिआँ सभ दुःख होवण दूर।
शब्दार्थ
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