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मा वागीश्‍वरि / चन्द्रमणि

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हे महिमामय सरस्वती मा
हम मतिमन्द महा अज्ञान
हम करबद्ध मूक छी जड़वत्
छी अक्षम गाबी कोनी गान।

मंजुलतम स्वर वीणावादिनि
वागीश्‍वरि हम काक समान
सर्वमयी स्वच्छन्द बिहारिनि
दिशाहीन हम छी अनजान।

हंसासन पद्यासन शोभित
श्वेताम्बर कर-सर्व-विधान
आदिशक्ति मणिमाल धारिणी
ज्ञान-भवन सर्वज्ञ महान।

विश्‍व मोहिनी ज्ञान-प्रदायिनि
हमरा हि अछि ज्ञानक भान
ज्योतिर्मय-पथ देखा दिअऽ मा
दिअऽ बुद्धि विद्या वरदान।।