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मा है बा / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
सारू कोनी नहर रै
पण कीं बाकी कोनी रैवै
जद खूट जावै पाणी
पीळी पड़ जावै फसलां
किरसै रै सागै
मगसो पड़ जावै
नहर रो ई उणियारो।
बिना पाणी
जद कळपै
उणरी गोदी रमता
जळचर
झर-झर रोवै
उणरी आतमा।
सेवट मा है बा
कींकर अणजाण रैवै
टाबरां री पीड़ सूं।