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मा (चार) / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
कीं भोळावण नीं देयग्या
जावण सूं पैली म्हारी मा नै
म्हारा बापूजी।
बै कदैई दुखी नीं होवता
पछै इतरा बेगा क्यूं गया?
नीं समझ सकी बापूजी री मा।
म्हारी मा नीं रोय सकी
बापूजी रै जावणै माथै
बापूजी री मा, नीं रोवै, इण खातर।
काळजै लगा लीनो म्हनै रातूं-रात
अबै थूं ई है डीकरा म्हारो लिछमी रो नाथ
दूणी सरधा रै सागै फेर दीनो
म्हारै माथै आपरो हाथ
अबै म्हैं हूं बापू री मा रो डीकरो
नीं थनै दुखी होवणो
अर
नीं म्हैं दुखी रैवूं, थारा मा-बापू हूं म्हैं।