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मा (नव) / राजेन्द्र जोशी

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सोच्यो पूछूंला
मूंढै सूं नीं निकळै सबद
भोरान भोर
बांरी फुरती देख
फगत भूल जावूं
रात रै सोच्योड़ी बातां।

तूट्योड़ी छाती
फूट्योड़ी आंख्यां
लीर-लीर हुयोड़ा गाभा
स्यात तूट्योड़ो मंगळसूत
कनै राखै हमेस सोवती टैम
म्हारी मा।

म्हैं रोज रात नै
सोच्यां जावूं
औ कांई है थारो हाल
कठै लुकायो, इण नै राखै
देख्यां सूं लाजां मर जावूं।
म्हैं दिनूगै सोचूं
पूछूंला
थूं हुय जावै सब सूं पैली त्यार
सूकै म्हारा होठ
नीं पूछ सकूं
थनै रिझावती देख
देखतो रैवूं थारो सिणगार
थारी महिमा अपरमपार
म्हनै मारग दिन रो मिळ जावै
जद मा साम्हीं आवै
जद मा साम्हीं आवै।