भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मा : आठ / कृष्णकुमार ‘आशु’
Kavita Kosh से
मा काढती
पैली रोटी
गा री पांती
मा रै जावण पछै
कई बार
घर आळी भूल जावै
गा री पांती री
रोटी काढणी।
बीं दिन
म्हनै लागै कै
आज फेर भूखी रै'गी मा।