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मा : दस / कृष्णकुमार ‘आशु’
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बीज जद धरती सूं
फूट्यौ बण'र अंकुर,
म्हानै सुणन लाग्या
मा री लोरी रा सुर
तिरसी धरा माथै
जद बरस्यौ मेह,
म्हूं भीज्यो
ममता रै नेह।
तपती लू में
अचाणचक चाली पून,
जद चिड़ी दूर सूं ल्या'र
बचियै नै दियो दाणौ
म्हानै याद आयो
मा रो लाड लडाणौ।