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मिग्रत्रिस्णा / शिवराज भारतीय
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सुख नै सिरजण री आसा सूं
घणां बणाया मै‘ल माळीया
ल्याया टणकी मोटर गाडयां
आथूणीं होड़ा होड़ी में
घणी मचाई आपाधापी
पईसै सूं सुख पकड़ण सारू
भाजै सगळा लोग-लुगाई
फटफटियै रै पहियै दांई।
हरदम चेताचूक हुया सा
मिनख अणूंता भाजै ई भाजै
खाडा-खोळी अळगा मारग
गिरता-पड़ता कांई न सूझै
भरी तिजोरयां भरी बखारयां
बात करण रो नै‘चो न पावै
हाय पईसो हाय पईसो
करतां रात्यूं नींद न आवै।
पण निज पड़बिंब पकड़ण दांई
सुख री छाया आगै-आगै
पाछै-पाछै म्रिगत्रिस्णा ज्यूं
सगळा लोग-लुगाई भागै।