मिटा कर नफ़रतें सबको गले से अब लगाना है।
वफ़ाओं की लगा बाज़ी स्वयं को आज़माना है॥
हुए वह ग़ैर जैसे दुश्मनों से जा मिले जब से
बहुत मुश्किल है लेकिन प्यार का रिश्ता निभाना है॥
न हो बंजर जमीं सूखे न खेती ध्यान है रखना
मुहब्बत प्यार की प्यारी फसल हमको उगाना है॥
हजारों रंग फूलों के अनोखी खुशबुएँ न्यारी
अमन वाला चमन इस देश को फिर से बनाना है॥
जमी कागज़ की हो चाहे समन्दर रौशनाई का
नहीं मुमकिन फ़साना इश्क़ का फिर भी लिखाना है॥
बहुत सरगर्मियाँ बढ़ने लगीं दहशत परस्तों की
इन्हें मुँह तोड़ उत्तर दे जमीं पर शांति लाना है॥
किनारे पर खड़े होकर न जल की नाप गहराई
समन्दर में उतर ग़र कीमती मोती उठाना है॥