भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिटी दूरी दिलों की अब / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिटी दूरी दिलों की अब
न चिन्ता मंज़िलों की अब।

नहीं सुनना कहानी तुम
जहाँ के बुजदिलों की अब।

बसेगी फिर नयी दुनिया
जहाँ के काबिलों की अब।

कभी परवाह मत करना
सफ़र में साहिलों की अब।

उजड़ती जा रही दुनिया
जहाँ के जाहिलों की अब।

करो चर्चा नहीं यारों
कभी शिकवे-गिलों की अब।