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मिट्टी का दीपक / मुस्कान / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
शाम हुई जब किरणें सोयीं
घिरने लगा अँधेरा।
दल बल सहित धरा पर आकर
लगा डालने डेरा॥
सूरज डूबा बची खुची
किरणों को मार भगाया।
रंग बिरंगी धरती पर फिर
काला रंग लगाया॥
सहम सहम कर तारे जागे
होने लगा उजाला।
जगमग करते चन्दा पर भी
काला अञ्चल डाला॥
दिन भर सोया रहा निडर जो
वीर साहसी भोला।
जग कर नन्हे मिट्टी के
दीपक ने तब दृग खोला॥