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मिट्टी का मोह क्या करना / प्रणय प्रियंवद
Kavita Kosh से
उनके इंतज़ार में कब से शव था रखा पड़ा
घर में विलाप था पसरा हुआ
आंगन था सूना
चिड़ियों ने भी अनावश्यक चिल्ल-पों नहीं मचाई
कुत्ते भी मुंह मोड़े दरवाज़े पर थे पड़े…
फ़ोन हुए थे बेकार
शहर था दूर
ब्राह्मणों ने बताया
अनिवार्य था उनका इस समय होना
आंगन में मंत्रोच्चार के बीच
उस मृत आत्मा के लिए
की जा रही थी प्रार्थनाएँ
जारी था उनके पिछले जीवन पर वार्तालाप…
बड़े कष्ट से बेटों को पढ़ाया
जमीन का मोह मत करना
आदमी बनना सिखाया
पूरे सत्ताइस घंटे के बाद वे पहुंच पाये
पिता के शव को पैरों के तरफ से प्रणाम किया
मन ही मन बुदबुदाये।
फिर आंगन में खड़े सबसे बुजुर्ग से कहा
दादा आप तो समझदार थे…
शव का घर में इतने घंटों रहना शुभ नहीं
यह देह तो अब मिट्टी हुई
मिट्टी का मोह क्या…