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मिट्टी से खेलते हो बार-बार किस लिए / शैलेन्द्र

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मिट्टी से खेलते हो बार-बार किस लिए

टूटे हुए खिलौनों से प्यार किस लिए


बना के ज़िन्दगानियाँ बिगाड़ने से क्या मिला

मेरी उम्मीद का जहाँ उजाड़ने से क्या मिला

आई थी दो दिनों की यह बहार किस लिए


ज़रा-सी भूल को हज़ार रूप दे दिए

ज़रा-सी जाँ के सर पे सात आसमान दे दिए

बरबाद ज़िन्दगी का ये सिंगार किस लिए


ज़मीन ग़ैर हो गई ये आसमाँ बदल गया

हवा के रुख बदल गए, हर एक फूल जल गया

बजते हैं अब ये साँसों के तार किस लिए