भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिट्ठू का बाजा / सरस्वती कुमार दीपक
Kavita Kosh से
कुछ परदेसी भूल गए,बरगद के नीचे बाजा-
बैठ गए संगीत सिखाने, अपने मिट्ठू राजा!
बाजा सुन सारे पशु आए
बाजा सुन, पंछी मुसकाए,
मोर नाचने लगा थिरककर,
कोयल ने भी गीत सुनाए।
बंदर मामा लेकर आए, केला ताजा-ताजा!
सा-रे-गा-मा की धुन न्यारी
सबको लगती थी अति प्यारी,
राम-राम जब मिट्ठू बोले
लगी बोलने टोली सारी।
सूँड पकड़कर भालू बोला, ‘हाथी भैया आ जा!’