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मित्तर प्यारे कारन / बुल्ले शाह
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मित्तर प्यारे कारन नी मैं,
लोक उल्हामें लैनी हाँ।
लग्गा नेहुँ मेरा जिस सेती,
सरहाणे वेख पलंघ दे जीती,
आलम क्यों समझावे रीती,
मैं डिट्ठे बाझ ना रैहनी हाँ।
मित्तर प्यारे कारन नी मैं,
लोक उल्हामें लैनी हाँ।
तुसीं समझाओ वीरो भोरी,
राँझण वंेहदा मैत्थों चोरी,
जींहदे इशक कीती मैं डोरी,
नाल आराम ना बैहनी हाँ।
मित्तर प्यारे कारन नी मैं,
लोक उल्हामें लैनी हाँ।
बिरहों आ वड़ेआ विच्च वेहड़े,
ज़ोर ज़ोर देवे तन घेरे,
दारू दरद ना बाज्झों तेरे,
मैं सज्जणाँ बाज्झ मरेनी हाँ।
मित्तर प्यारे कारन नी मैं,
लोक उल्हामें लैनी हाँ।
बुल्ले शाह घर राँझण आवे,
मैं तत्ती नूँ लै गल लावे,
नाल खुशी दे नैण विहावे,
नाल खुशी दे रैहनी हाँ।
मित्तर प्यारे कारन नी मैं,
लोक उल्हामें लैनी हाँ।
शब्दार्थ
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