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मित्र से विछोह / भारत यायावर

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अनिल जनविजय को महसूस करते हुए

मित्र दूर है
मिलने की कोई उम्मीद नहीं
उससे बिछड़ने की पीड़ा सह रहा हूँ

जब हृदय के तार जुड़े हों
कि मर जाएँगे पर अलग नहीं होंगे
कि हम
अपनी सम्पन्नता की डींग नहीं हाँकते
प्रेम को समझौता नहीं समझते

जब अस्तित्व के लिए श्रम और संघर्ष
मित्र के बिना कठिन हो
वह संकटों से घिरा हुआ अकेला और दूर हो
दिल कचोटता रहता है
होंठ भिंचे रहते हैं
चेहरा जलता रहता है
आँसुओं से तर-बतर

मेरा सच्चा और प्यारा मित्र !
दूर है मुझसे और मैं नितान्त अकेला हूँ
मेरे पास कुछ नहीं है कहने को
एक तूफ़ान-सा सीने में उठा करता है
गर्म हवा झुलसाती है मुझे
या सर्द हवाओं से कँपकँपाती है रूह
तीखी बातें सुनकर भी कोई निशान नहीं पड़ता
मित्र को देखने की ख़ुशी रुलाती है मुझे

जब भी ज़िक्र चलता है
बीते दिनों का
हंसता-मुस्कुराता एक चेहरा
प्रकट होकर
जीने का सहारा बनता है