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मिथिलापुरी शोर भयो हे जनक प्रश्न ठामे / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मिथिलापुरी शोर भयो हे जनक प्रश्न ठामे
चैतहि मास सिया रूप अनूप, देखि जनक मनहि मन चूप
कि आब सिया भेली बारी बयस, सब गुण बर भेटत कोन देश
पूरत अभिलाष
बैशाखहि मास ऋषि सुदिन बनाओल, नग्र हकारि चाप चढ़ाओल
इहो प्रश्न भारी वचन प्रमाण, जे इहो धनुषा तोड़त बलवान
सिया लए जइहें
जेठहि पत्र फिरहिं सभ देश, सुनि हर्षित भेल सकल नरेश
कि राम ओ लक्षमण वशिष्ठ मुनि संग, हाथ धनुष शर कोमल अंग
जनकपुर आयल
पावस मास अषाढ़, सुनि प्रश्न कठिन क्रोध मन भार
कि एक एक मुनि सौ सौ बेर चाप गहथि, कि सभ बेधल शरीर
कि हारि सभ बैसथि
सावन नृपति जनक अकुलाय, हारि बैसल भूप मान धराय
कि आब सिया बैसल रहल कुमारि, किछु ने भेल जग के हकारि
धनुष नहि टूटल
भादव नृपति कहथि कल जोड़ि-
जे इहो धनुष तोड़त बलवान, तिनि संग सीता देब बियाहि
कि लाज बड़ भारी
आसिन लछुमन कुदथि मैदान, चुटकी सँ तोड़ब कि धनुष पुरान
कि क्रोध कीन्ह भारी
कातिक धनुष तोड़ल भगवान, अनहद सुद्ध भेल घमसान
कि झहरय गगन सँ बरसय फूल, राम सिया दूनू समतूल
कि बाजि गेल डंका
अगहन राजा सोचल बरियात, कि रथपर लाल ध्वजा फहराय
कि दशरथ समधि समान, जनक मंडप पर सोचथि भगवान
बियाहि जानकी फूलहिं हाथी चललि रनिवास
करू आरती करपूरहि आस, कि मंगल गाओल
वशिष्ठ संग भेल जनक के भाग्य, कि राम आयल
माघहि मास देखि जनक कयलनि विदाइ
अपरम्पार हरख भेल, कि विस्मृति भेल जन्म
पूरल सब आस
फागुन गौना कयल रघुनाथ, कि जानकी कयलनि देस अनाथ
मिथिलापुरी केर पूरल आस, कि बाबूलाल गाओल इहो बरमास
की मिसान उड़ि गेल