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मिथिलामे ताकि रहल छी / एस. मनोज
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हम मिथिलामे ताकि रहल छी
पोखरि पोखरि माँछ मखान
पढ़ल-लिखल हम्मर सभ बेटा
दिल्ली पटनामे फिरिसान।
श्रमिक लेल नहि कतहुँ बोनि अछि
कृषक लेल नहि कत्तहु काज
पढ़ल-लिखल जे नवतुरिया अछि
ओ सभ केहन भेल अकाज
बाटमे हमला, घरमे हमला
बच्ची-बूढ़ी सबहक साथ
अखनहुँ त' प्रतिवाद करै जाउ
अपन-अपन बढ़बू हाथ
राजनीति सँ नीति हटल आ
राज करै अछि पूँजीतंत्र
धनबलमे जे बिला गेल अछि
ओत्तहि आनू जन केर तंत्र।