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मिनख-दोय / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
म्हूं थां स्यूं
बात करती डरूं
कांईं ठा’ मुंडै स्यूं
कांईं निकळज्यै
अर थूं हुज्यै
निराज
पछै थूं जीवै
आपरै ‘इगो’ साथै
पण
म्हूं सोचूं
कितीक हुवै जिनगी
कांईं ठा’ कद हुज्यै
राम नाम सत
‘इगो’ क्यूं पाळै
मिनख।