मिनख री जीत नीं दीखै / गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
प्रीत रो गीत झूठो है, जठै परतीत नीं दीखै।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
समंद रै घाव सीनै पर, नमक सूं नेह रो नातो।
समझसी दरद समदर रो, नमक री नीत नीं दीखैे।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
मुळकती मोमबत्ती है, पतंग रै खून री प्यासी।
मुळक मनवार झूठी है, पतंग सूं प्रीत नीं दीखै।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
जिगर रो नेह जाळै है, पतंग हित प्रीत पाळै है।
मगर ओ कीट कळजुग रो, दिवै रो मीत नीं दीखै।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
चंदरमा आय जद चूमीं, कुमुद री खिल उठी कळियां।
(पण) कुमुद रै हेत ऊगण री, शशी रै रीत दीखै।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
कुमुद कद रात कुणसी में, चंदरमा देख नीं चटकी।
कुमुद कुम्हळावती कूकै, दिवस में चांद नीं दीखै।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।
रायता रीत रा रांघ्या, गायोड़ा गीत सै गाया।
मारू जुद्ध मौत सूं मांडै, सजन मन प्रीत नीं दीखै।।
जगत जंजाळ लूंठो है, मिनख री जीत नीं दीखै।।