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मिनख (01) / कन्हैया लाल सेठिया

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फिरै जींवतो मिनख
पण मरग्यो मिनखपणो
नहीं अणभूतै
मांय मरयोड़ै मिनखपणै री
सूगली घिन
हुग्यो सैंगद
कोनी रयो नैणां में नेह
खूटगी संवेदणा री सीर
अबै बो साव सिंग्याहीण
दो पगां रो सांसर !