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मिनख (1) / कन्हैया लाल सेठिया

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ओ मिनख
कांई हुयो
सिसटी री
हूण हूग्यो,
फिरतां ही
जकै रो मंूडो
आंथूण अगूण हूग्यो
भरतां ही
एक पांवडो
कुसूण सूण हुग्यो
हूंता ही जलम
बिरमांड संपूण हुग्यो !