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मिरिना की ताँतिन / अज्ञेय

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यह मेरा ताना
यह मेरा बाना
गहरे में छिला कर
मैं ने फूल का नाम चुन लिया

उसी पर...बदल-बदल रंगों को...बूटी बुनी।...
पर यह जो उभरता आता है
मुझे चौंकाता है :
यह तो किसी दूसरे ताँती ने आ कर

किसी दूसरे करघे पर बुन दिया!
कौन है वह निर्मोही गुनी!

अक्टूबर, 1969

मिरिना : भूमध्य सागर के पूर्वी तट की एक प्राचीन नगरी थी।