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मिरे सर कर्ज है कुछ जिन्दगी का / नज़ीर बनारसी

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मिरे सर कर्ज़ है कुछ ज़िन्दगी का
नहीं तो मर चुका होता कभी का

जरूरी है तअल्लुक जिन्दगी का
वही अच्छा जो हो जाये किसी का

अजाना रास्ता दो अजनबी का
सफर करना है पूरी जिन्दगी का

न जाने इस जमाने के दरिन्दे
कहाँ से लाये चेहरा आदमी का

कज़ा सर पर है लब पर नाम उनका
यही लम्हा है हासिल जिन्दगी का

वहाँ भी काम आती है मुहब्बत
जहाँ कोई नहीं होता किसी का

’नजीर’ आती है बालों पर सफेदी
सवेरा हो रहा है जिन्दगी का