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मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह / कविता किरण

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह
पेश आ रहे हैं यार भी अय्यार की तरह।

मुजरिम तुम्ही नहीं हो फ़क़त जुर्म-ए-इश्क के
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह।

वादों का लेन-देन है, सौदा है, शर्त है
मिलता कहाँ है प्यार भी अब प्यार की तरह।

ता-उम्र मुन्तज़िर ही रहे हम बहार के
इस बार भी न आई वो हर बार कीतरह।

अहले-जुनूं कहें के उन्हें संग-दिल कहें
मातम मना रहे हैं जो त्यौहार की तरह।

यादों के रोज़गार से जब से मिली निजात
हर रोज़ हमको लगता है इतवार की तरह।

पैकर ग़ज़ल का अब तो 'किरण' हम को कर अता
बिखरे हैं तेरे जेहन में अश'आर की तरह।