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मिलती अगर सान्त्वना तुमको मेरे दुखसे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

मिलती अगर सान्त्वना तुमको मेरे दुख से, हे प्रियतम!
तो लाखों अतिशय दुःखों से घिरी रहूँगी मैं हरदम॥
किंचित्‌‌-सा भी यदि सुख देता हो तुमको मेरा अपमान।
तो लाखों अपमानों को मैं मानूँगी प्रभुका वरदान॥
यदि प्यारे! मेरे वियोगमें मिलता तुम्हें कहीं आराम।
कभी नहीं मिलनेका मैं व्रत लूँगी, मेरे प्राणाराम!॥
मेरी आर्ति-विपत्ति कदाचित्‌‌ तुम्हें सुहाती हो यदि श्याम!
तो रखूँगी इन्हें पास मैं सपरिवार नित, दे आराम॥
मेरा मरण तुम्हें यदि देता हो किंचित्‌‌-सा भी आश्वास।
तो मैं मरण वरण कर लूँगी, निकल जायगा तनसे श्वास॥
सुखी रहो तुम सदा एक बस, यही नित्य मेरे मन चाह।
हर स्थिति में मैं सुखी रहूँगी, नहीं करूँगी कुछ परवाह॥