मिलते मुझको पंख तो,
भरता तीव्र उड़ान
पा लेता उपलब्धियाँ,
आ जाती मुस्कान
जीवन के संघर्ष से,
तन है चकनाचूर
स्वजन दिये हैं जख़्म जो,
बने आज नासूर
रोड़े बनकर दे रहे,
राहों में व्यवधान
करे प्रताड़ित सर्वदा,
रोक रहा उत्कर्ष
शत्रु बना रहता खड़ा,
जिस पल आता हर्ष
पर मैं तो देता रहा,
सदा अभय का दान
रखकर ईर्ष्या-द्वेष जो,
सबको देता कष्ट
रहता खुद बेचैन वह,
नर तन करता नष्ट
क्षमा करें भगवान अब,
दें उसको सद्ज्ञान