मिलना तो मेरा तय ही है, तुमसे / प्रीति 'अज्ञात'
मिलना तो मेरा तय ही है तुमसे
इस बार नहीं, तो न सही
अगले जन्म में,फिर लौटकर मैं आऊँगी
पसर जाऊँगी, बिन बुलाए ही
सर्द से उस मौसम में
तेरे आँगन की धूप बनकर
या बरस जाऊँगी कभी
बारिश के चमकीले मोतियों में ढलकर
हो सका तो वृक्ष ही बन जाऊँ, कभी
तेरे उस पसंदीदा गुलमोहर का
जिसे रोज ही देखने का मोह
तब भी न छोड़ पाओगे तुम
बैठोगे कुछ पल तो साथ मेरे
यूँ कहने को, बैरी दुनिया के लिए
बस वहाँ सुस्ताओगे तुम
क्यूँ न बनूँ मैं 'सूरजमुखी'
जो खिल जाए, रोज ही तुम्हें देखकर
या कि बन छुईमुई, लजा के कभी
खुद ही में सिमट जाऊँगी
ओढ़ा दूंगी आवरण, तेरे दुखों को
बादलों-सी छाया बन
और नदिया-सी बह, तेरे आँसुओं को
खुद में ही समा ले जाऊँगी
भर दूँगी हर रंग तेरे जीवन में
सदियों के लिए
चाहत की गर्मी से अब
हर ग़म तेरा पिघलाऊँगी
ए मीत मेरे, ये प्रीत तेरी
सदियों से है, सदियों के लिए
यूँ जाना अभी तय है मेरा
बस साथ हूँ, कुछ पल के लिए
है ग़म तो बस यही कि ये दम
तेरे पहलू में ही निकले तो बेहतर होता
न होता कुछ भी पास हमारे
बस इक पल को ही सही
पर साथ ये मुक़द्दर होता
न करना तू अफ़सोस, इस जमाने का
इसका तो काम ही है, आज़माने का
पर वादा है मेरा, अब भी तुझसे
बन हर रंग तेरे जीवन का
इंद्रधनुष-सी तेरे आसमान पर छा जाऊँगी
मिलना तो मेरा तय ही है तुमसे, और तब
तेरे कहने से भी, वापिस नहीं फिर जाऊँगी