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मिलना / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
एक पूरा दिन
भीगती रही धरती
एक पूरा दिन
झुकती चली गई धरती
एक पूरा दिन
बिछता चला गया आसमान
एक पूरा दिन
वो खिली जैसे सूर्योदय के बाद फूल
बही जैसे उद्गम से नदी
उड़ी जैसे पहली बार उड़ती है कोई नन्हीं चिड़िया
एक पूरा दिन
ये दुनिया
बनी रही किसी समानांतर रेखा की तरह
एक पूरा दिन
उसकी आवाज गूँजी शिशु की किलकारी की तरह
उसे मिली खुद के समंदर की अनदेखी सीपियाँ
एक पूरा दिन
भर गया उसमें इतनी ऊर्जा
कि वो इस पृथ्वी को अपनी हथेली पर महसूस कर
तैयार है हर मुश्किल का सामना करने के लिए
एक पूरा दिन उसकी खुद से मुलाकात हुई।