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मिलने-जुलने का अभी और सिलसिला रखना / अमरेन्द्र

मिलने-जुलने का अभी और सिलसिला रखना
ये कायदा है मुहब्बत का, कायदा रखना

तुमसे छोड़ी नहीं जाती है जब जफा रखना
मैं कैसे छोड़ता फिर अपनी ही वफा रखना

कितने गहरे हो अभी इतना आजमाया करो
तुम्हारे वश में नहीं मुझको आजमा रखना

कभी तुम्हारा ही मन हो कि मुझसे आके मिलो
इसी से कहता हूँ मिलने का रास्ता रखना

तुझे तो भीड़ में चलने की नहीं आदत है
तू अपनी राह सभी से जुदा-जुदा रखना

जहां में जिस्म का अब कारोबार होता है
बहुत बुरा हुआ दिल का मुतालबा रखना

तुम्हें भुला के मेरे दोस्त मैं भी भूल गया
हसीन शायरी का हुस्नो-जायका रखना

वो हाल जिस्म के खूं होने का सुनाएगा
तुम भी अमरेन्द्र अपने दिल का वाकया रखना।