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मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में / गुलाब खंडेलवाल
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मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!
पंचवटी में भी जब आये
क्या श्री राम सुखी रह पाये!
सीता को न देख अकुलाये
चुभा शूल-सा मन में
'बोले लक्ष्मण से कातर-स्वर
"भाई! क्यों तुम गये छोड़कर!
सोचा भी न अकेली स्त्री पर
क्या बीतेगी वन में!'
पूरी भी न हुई थी गाथा
प्रभु ने सिहर झुकाया माथा
'क्यों न मुझे भी यह सूझा था
उसके निर्वासन में!'
मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!