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मिला सब कुछ जहाँ में क्या कमी है / रचना उनियाल
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मिला सब कुछ जहाँ में क्या कमी है,
मगर क्यों आँख से बहती लड़ी है।
कहाँ जाना किसी ने ज़िंदगी को,
कहीं पर ग़म कहीं ख़ुशियाँ बड़ी है।
लिए जब सात फेरे बांध माला,
वही सूरत सनम की दिल बसी है।
छिपाये दिल सदा जज़्बात अपने,
पढ़ेगा कौन किसको क्या पड़ी है।
रहा अब जान इंसा आदमी को,
नये इस दौर की मुझको ख़ुशी है।
हुई कब मंज़िलें भी दूर मुझसे,
बढ़े हैं हौसले सारी ज़मी है।
विरासत थाम लेगी प्यार ‘रचना’,
हमारी आन की सूरत वही है।