मिला हिमालय के रस्तों पर / वैभव भारतीय
मिला हिमालय के रस्तों पर 
केशकम्बली कुबड़ी वाला
मुझसे बोला राह बताओ
उस टूटे शिव-मंदिर वाला। 
मैंने बोला बाबा तुम भी 
क्यों जाओगे खंडहरों में 
वो तो बस सुनसान पड़ा है
वर्षों से वीरान पड़ा है। 
उस मंदिर से शिव चले गये
वर्षों पहले कैलाशों में 
मंदिर की हर इक ईंट गिरी 
शिव क्यों विचरेंगे लाशों में। 
बाबा ज़रा बिफडकर बोले
क्यों प्रलाप करते हो बच्चा! 
शिव औघड़ है शिव फक्कड़ हैं
सब उनका है बुरा या अच्छा। 
शिव को क्या गर छत उजड़ गई
सारा नभ ही उनका छत है 
जो शिव को आश्रय दे पाये
ऐसा मंदिर बस इक हठ है। 
मंदिर तो बस इक ज़रिया है 
हम तुच्छ मानवों की ख़ातिर 
मन-घोड़े को हम बाँध सके 
शिवशम्भु से मिल लें आख़िर। 
शिव जंगलियों के स्वामी हैं
बेघर पुरुषों के आदिपुरुष 
वो खुले आकाशों के स्वामी
तप, त्याग, विरह के राजपुरुष। 
जनजाति जिसे आराध्य मान
सब पाठ प्रकृति का लेते है 
उसको क्या महल खंडहर क्या 
शिव हर ज़र्रे में होते हैं। 
यदि मंदिर है खण्डहर मात्र
शिव धूनी भी मिल जाएगी
सब शिवम् सुंदरम् सत्यम का
अनुबन्ध वहीं करवाएगी।
	
	