भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना।
क्या करता हूँ हरदम श्याम का उल्फ़त का पैमाना॥
मज़ा है यह बेखुदी का यह कि मैं दुनिया में हूँ लेकिन,
न जाना मैंने दुनिया को न दुनिया ने मुझे जाना।
मुझे है सिर्फ़ अपने यार के दीदार से मतलब,
चाहे मन्दिर हो या मस्जिद हो काबा या बुतखाना।
हमेशा बस ये रिश्ता चाहता हूँ प्यारे मोहन से,
मैं उनको दिलरुबा समझूँ वो समझें मुझको दीवाना।
वही है ‘बिन्दु’ दृग में मोम दिल मोती के दाने हैं,
विरह की आग में पड़कर पिघल जाता है गर दाना।