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मिलूं मैं किसी दिन इस तरह / सानु शर्मा / सुमन पोखरेल

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किसी दिन इस तरह मिलूँ मैं तुझसे, कि
न विदा होने की जल्दी हो,
न कोई व्यवधान होने की चिंता हो,
बातें पूरी हो जाएँ, और
दिल का हर कोना रिक्त हो जाए,
कही न जा सकी बातों को याद कर
मन को न पछताना पड़े,
न कोई हिचकी आए ।

न थकूँ मैं बोल-बोल कर,
न भरे दिल तुम्हें सुन-सुन कर,
समय की कोई सीमा न हो,
और एक ही जगह बँध जाएँ
तुम, समय, और मैं ।

बाँध लूँ आगोश में तुम्हें
और सो जाऊँ बेफिक्र,
न जाग उठने की जल्दी हो,
न कुछ छूट जाने का फिक्र हो,
तुम्हारे आलिंगन में पिघल जाऊँ, और
विलीन हो जाऊँ तुममें इस तरह,
जैसे आत्मा लीन होती है परमात्मा में ।

केवल ऐसा अतृप्त सपना न देखूँ,
तृप्त कर देने वाली जागृति हो ।

इस तरह मिलूँ मैं
किसी दिन तुमसे ।
०००

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