मिले न जो भावना का सम्बल / बलबीर सिंह 'रंग'
मिले न जो भावना का सम्बल
विचार आखिर विचार ही है।
विचरती है भावना निरन्तर,
निखरती है साधना निरन्तर,
न भेद सुबरन हो या सुमन हो
निखार आखिर निखार ही है।
गुजरती है यूँ भी जिन्दगानी,
न आये आँधी न बरसे पानी,
पवन उन्नचास हों मलय के
बयार आखिर बयार ही है।
मिटाते कलियाँ खिला-खिला के,
तृषा बढ़ाते पिला पिला के,
चढ़ेगा कोई नशा कहाँ तक
उतार आखिर उतार ही है।
अजीब है पंछियों का डेरा,
कहीं है उड़ना कहीं बसेरा,
भले ही पतझड़ के गीत गा लो
बहार आखिर बहार ही है।
किसी ने अनुमान क्या लगाया,
जो तुमने खोया जो मैंने पाया,
कृपण को कोई कुबेर कह ले
उदार आखिर उदार ही है।
जो सब सुनेंगे वही कहूँगा,
पराया हो कर कहाँ रहूँगा
सजा बजा कर मुझे सबारो
दुलार आखिर दुलार ही है।
तुम्हारी ही छबि निहारता हूँ,
तुम्हें बाबर पुकारता हूँ,
पुकार पर तुम न ध्यान देना
पुकार आखिर पुकार ही है।