मिले न बात और थी / राजेन्द्र राजन (गीतकार)
मिले न बात और थी, मिले तो बात और है
इक आग है पवित्र सी, उस आग को टटोलिए
मिज़ाज ख़ुश्गवार है, के वक़्त की पुकार है
कि उम्र की बहार को, न संयमों से तोलिए
ये तेरे मेरे साथ है, ये रात बात सुन रही
किसी के सामने न यूँ दिलों के भेद खोलिए
तेरे भी होंठ चुप रहें, मेरे भी होंठ चुप रहें
जो कुछ भी बोलना है वो, नज़र-नज़र से बोलिए
उठा कर दम ठहर गया, अजीब से मकाम पर
नयन लजाए से किसी का पथ निहारने लगे
मदभरी उमंग के भी पंख फड़फड़ा उठे
तो सोए सोए अंगों को वसन उघाड़ने लगे
सन्त से समीर ने भी आयु भेद पा लिया
हुआ कि तन के साथ-साथ प्यार माँगने लगे
तपस्विनी हिना को भी शबाब इस कदर चढ़ा
कि होंठ दहके से पिया-पिया पुकारने लगे
उड़ सकूँ उमंग से जो अपने पंख खोलकर
मैं विश्व में वो खोया आसमान ढूँढ़ने चला
तय किया था हर डगर पे हम चलेंगे साथ-साथ
हर डगर पर स्वप्न के निशान ढूँढ़ने चला
उम्र जब निकल गई कि वक़्त को निगल गई
मैं ज़िन्दगी में प्यार का विधान ढूँढ़ने चला
हो चुका था जिस नगर से बेदख़ल तो देखिए
उसी नगर में छोटा-सा मकान ढूँढ़ने चला ।