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मिले हैं जिससे वही निकला दिल का काला है / दरवेश भारती

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मिले हैं जिससे वही निकला दिल का काला है
यहाँ कहाँ कोई ईमां पे चलने वाला है

दिलो-दिमाग़ में उसके ही तो उजाला है
जवान रुत में भी किरदार जिसका आ'ला है

बताया जिसने भी अपनी उदासियों का सबब
उसी, उसी ने सरे-आम इसे उछाला है

करे है याद समन्दर को ज़िन्दगी के लिए
ये तशनःकाम बशर भी बहुत निराला है

न छीन ले कोई रंजो-अलम जो उसने दिए
हज़ार खुशियों की क़ीमत पे इनको पाला है

ये कैसा दौर है आया कि जिसमें हर मासूम
सियासी साज़िशों का बन रहा निवाला है

न डाले फिर कोई दहशत में इसको ऐ 'दरवेश'
धड़कते दिल को किसी तौर अब सँभाला है