भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिल गये थे / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी की राह पर जब दो-क्षणों को
- मिल गये थे हम,
- मिल गये थे हम,
एकरसता मौनता का बोझ भारी
- हो गया था कम !
- हो गया था कम !
उड़ गया छाया थकावट का, उदासी
- का धुआँ गहरा,
- का धुआँ गहरा,
पा तुम्हें मन-प्राण मरुथल पर उठी थी
- रस-लहर लहरा !
- रस-लहर लहरा !
पर, बनी मंज़िल मनुज की क्या कभी भी —
- राह जीवन की ?
- राह जीवन की ?
क्या सदा को छा सकीं नभ में घटाएँ
- सुखद सावन की ?
- सुखद सावन की ?
आज जाना है विरल बहुमूल्य कितनी
- प्यार की घड़ियाँ,
- प्यार की घड़ियाँ,
गूँजती हैं आज भी रह-रह तुम्हारे
- गीत की कड़ियाँ !
- गीत की कड़ियाँ !