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मिल गये थे / महेन्द्र भटनागर
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					ज़िन्दगी की राह पर जब दो-क्षणों को
- मिल गये थे हम,
 
- मिल गये थे हम,
एकरसता मौनता का बोझ भारी
- हो गया था कम !
 
- हो गया था कम !
उड़ गया छाया थकावट का, उदासी
- का धुआँ गहरा,
 
- का धुआँ गहरा,
पा तुम्हें मन-प्राण मरुथल पर उठी थी
- रस-लहर लहरा !
 
- रस-लहर लहरा !
पर, बनी मंज़िल मनुज की क्या कभी भी —
- राह जीवन की ? 
 
- राह जीवन की ? 
क्या सदा को छा सकीं नभ में घटाएँ
- सुखद सावन की ? 
 
- सुखद सावन की ? 
आज जाना है विरल बहुमूल्य कितनी
- प्यार की घड़ियाँ,
 
- प्यार की घड़ियाँ,
गूँजती हैं आज भी रह-रह तुम्हारे
- गीत की कड़ियाँ !
 
- गीत की कड़ियाँ !
 
	
	

